25 जुलाई 2015

आईने से क्‍या कोई झूठ बोल सकता है (ग़ज़ल)

आईने से क्‍या, कोई झूठ बोल सकता है।
बिना चाबी क्‍या, कोई कुफ़्ल1 खोल सकता है।
सच्‍चाई छिपती नहीं सात परदों में भी,
तराजू में क्‍या, कोई हवा तोल सकता है।
भलाई का सिला मिलता है सदा भलाई से,
समंदर में क्‍या, कोई ज़हर घोल सकता है।
हो जीने का अंदाज़, दुनियादारी की सिफ़त,
जिसके पास क्‍या, कोई दिल डोल सकता है।
दोस्‍त फ़रिश्‍ते होते हैं, बाक़ी सब रिश्‍ते होते हैं,
जो दोस्‍ती क्‍या, रिश्‍ते भी बना अनमोल सकता है।
‘आकुल’ आईने की मानो जो दोस्‍त भी है नहीं तो
किसी से भी क्‍या, कोई मन की बैठ बोल सकता है।


1. कुफ़्ल- ताला  

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