14 अगस्त 2016

'आकुल' का नया गीत संग्रह 'नवभारत का स्‍वप्‍न सजायें' प्रकाशित। लोकार्पण शीघ्र

                          कलुष को बुुहारते गीत- भानु 'भारवि'
नवभारत का स्‍वप्‍न सजायें
एक गीतकार मानव मन की कोमल भावनाओं, संवेदनाओं और अनुभूतियों का प्रस्‍फुरण गीत या कविता के माध्‍यम से करता है। हाड़ौ़ती अंचल के ऐसे ही वरिष्‍ठ गीतकार गोपाल कृष्‍ण भट्ट 'आकुल' सामाजिक विद्रूपता, कलुषित मनोवृत्तियों तथा जीवन के कटु यथार्थ्‍य को भावनाओं की समाधि पर बैठे एक संत की तरह जितनी पारदर्शिता के साथ अभिव्‍यक्‍त करते हैं, उतनी ही संकल्‍पशील दृढ़ता के साथ उसके खिलाफ़  अपने आपको
खड़ा भी रखते हैं। 'आकुल'जी समीपस्‍थ परिवेश के अहसासों के साथ देश-दुनियाँँ की अन्‍यथा वृत्तियों को भी गहनता से परखते है। वे ऐसी सभी चिन्‍ताओं से अपने अापको परिवेष्टित पाते हैं, जिनके अपसरण की समाज को बड़ी जरूरत है। वे इन स्थितियों के विरुद्ध न केवल एक सहृदय गीतकार के रूप में अपितु, संघर्षशील मार्गदर्शक के रूप में भीी समाज का मार्ग प्रशस्‍त करते हैं। राष्‍ट्रीयता, नैतिकता व सदाचार कवि के गीतों का मूल स्‍वर है, जिसे उन्‍होंने समग्र छान्‍दसिक अनुशासन, लयात्‍मकता और स्निग्‍ध भंगिमाओं के साथ उकेेरा है। उन गीतों में प्रयुक्‍त छन्‍द, लय और गीति स्‍वाभाविक, सहज और विषयानुकूल रहे हैं, जो कवि के अन्‍तस से नि:सृत लगते हैं, जिसके सृजन में कवि ने कोई विशेष प्रयास किये हों, ऐसा प्रतीत नहीं होता। आशा है, ये गीत सुधी पाठकों के दिल-ओ-दिमाग़ को झंकृत करते रहेंगे और चिरंतन रचे-बसे रहेंगे। - अनुष्‍टुप प्रकाशन, जयपुर से प्रकाशित इस संग्रह पर प्रकाशक, साहित्‍यकार और सम्‍पादक की कलम से (इस संग्रह से उद्धृत )  

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