19 अक्तूबर 2016

दर्द के उन लम्हों में

लघु कथा
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उम्र 35 साल। करवा चौथ पर दिन भर पानी नहीं पीने का कठोर व्रत। शाम को चाँद देखने पर ही पानी का घूँट पीने का दृढ़ निश्चय। दोपहर होते-होते पत्नी को माइनर हार्ट अटैक हुआ और उसे बेहोशी की हालत में अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। पूरा शरीर पसीने से तरबतर। पानी की कमी। ड्रिप चढ़ानी पड़ी। वेंटिलेटर पर रखा गया। रात के साढ़े आठ बजे होंगे। मैं हॉस्पिटल की आईसीयू की खिड़की से बार-बार आकाश की ओर देख रहा था, चाँद इसी ओर निकलना था। दूर-दूर तक चाँद दिखाई नहीं दे रहा था। तभी मेरे हाथ पर स्पर्श हुआ। मेरी पत्नी ने मुझे छुआ था। मैंने उसकी ओर देखा। वह मुसकुरा रही थी। मुझे फड़फड़ाती आँखों से एकटक देख रही थी। आँखों की कोरों पर आँसू छलछला आए थे। थोड़ी देर में वह फिर बेहोश हो गई। रात यूँ ही आँखों में कट गई। सुबह नर्स के उठाने पर मैं उठा, देखा पत्नी ठीक थी। वह बैड पर बैठी हुई थी। डॉक्टर के कहने पर मैंने उन्हें पानी पिलाया। वे मुझे रात की तरह एकटक देखे जा रही थीं। मैं झेंपते हुए बोला- सॉरी, मैं तुम्हें चाँद नहीं दिखा पाया, तुम्हारा करवा चौथ का व्रत अधूरा रह गया। उसने धीरे-धीरे कहा- ‘नहीं, उन दर्द के लम्हों में मैंने पल भर तुम्हें देख लिया था, मेरा चाँद तो तुम थे, मेरे पास थे, मैं क्यों कोई दूसरा चाँद देखूँ और अभी तुमने मुझे पानी का पहला घूँट पिला दिया। मेरा करवा चौथ पूरा हो गया।

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