30 नवंबर 2016

कुछ कर गुजर जाइये (चार मुक्‍तक)

1
बैठने से बचिए, कुछ भी कर गुजर जाइये.
सोचना क्‍या चलिए कुछ भी कर गुजर जाइये.
कल की चिन्‍ता छोडि़ये, आज सँवार लें 'आकुल',
अब ठानिए,उठिए कुछ भी कर गुजर जाइये.

2
कितने हैं स्‍वच्‍छंद ये पंखी, दूर अम्‍बर तक भरें उड़ान.
कितनी हैं स्‍वच्‍छंद हवाएँँ, देेश-देशान्‍तर करें प्रयाण.
कितना है मन भी स्‍वच्‍छंद यह', प्रकृति संग भागा करता है,
कितनी है स्‍वच्‍छंद प्रकृृति यह, पहनती हर रुत का परिधान.

3
समय ने हौसले दिये हैं, बहुत कुछ कर जाना है.
पढ़ना भी है, इक पल भी खाली नहीं गँवाना है.
भाग्‍य है कि बहाने भी नहीं करने देता 'आकुल',
सोच लिया है मुझे हर हाल में मंजिल पाना है.

4
भूकम्‍प, आपदाओं से सबका दिल दहल जाता है.
अकर्मण्‍यता से अकसर मौका हाथ से निकल जाता है.
हवा के इक झौंके में ढह' जाते हैं ताश के महल 'आकुल',
जो कुछ कर गुजरता है, समय उनका भाग्‍य बदल जाता है.

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