21 नवंबर 2016

मौन रहेंगे


रोला छंद गीतिका (11  X 13 )
 
जीवन है विषकूट, पियेंगे मौन रहेंगे. 
घात और प्रतिघात, सहेंगे मौन रहेंगे.

कलियुग के अवसाद, ग्रहण में इस जगती को, 
और धधकता देख, जलेंगे मौन रहेंगे.

हम जनपथ की राह, बिलखते लोकतंत्र में, 
जन-जन का बलिदान, करेंगे मौन रहेंगे.

लालच मत्‍सर भूत, नाचता जिनके सिरपर 
कौन मसीहा बने, छु्एँगे मौन रहेंगे.

काक-बया का बैर, छछूँदर-साँप विवशता,
दुर्योधन हर बार, पलेंगे मौन रहेंगे.

छद्म, द्यूत, बल, घात, चाल हो शकुनी जैसी,
शर शैया पर भीष्‍म, जियेंगे, मौन रहेंगे.

लोकतंत्र में भ्रष्ट, बिना नहींचलता शासन, 
भ्रष्टाचारी और, बढ़ेंगे मौन रहेंगे.

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