5 जनवरी 2017

जिंदगी ने कभी हार मानी नहीं

(गीतिका)

मापनी- 212  212  212  212 
समांत- आनी
पदांत’ नहीं
(अरुण छंद)

जिंदगी ने कभी हार मानी नहीं
मौत ने की कभी महरबानी नहीं

मौत ने ठहर के जिंदगी को सुना
आदमी ने कभी बात मानी नहीं

वक्‍त ने खूब उसको दिये तोहफे
मात्र बचपन बुढ़ापा जवानी नहीं

वह गुरूर न करे काश जीते हुए  
हौसलों से कभी छेड़खानी नहीं

जिंदगी में करोगे वही है अमर  
मौत जिस्‍मानी’ दी है रू’हानी नहीं.

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