28 अगस्त 2017

बीच धार मत छोड़ना (गीतिका)

छंद- सोरठा
मात्रा भार- 11, 13 (दोहा का उल्‍टा)
पदांत- मत छोड़ना
समांत- आर

जीवन में तू हाथ, कभी यार मत छोड़ना.
अपनों का बस हाथ, बीच धार मत छोड़ना.

मिला तुझे संसार, मिली प्रीत है यार की,
मिलता कब हरबार. कभी प्यार मत छोड़ना.

रिश्ते ही गुलजार, करते हैं घर को सदा,
नहिं अतिथि सत्कार, मनूहार मत छोड़ना,

जर जोरू व जमीन, रचते हैं इतिहास ये,
लगे न इनसे दाग, बिन आ’भार मत छोड़ना.

रखना तू पहचान, रिश्तों के चलते मगर,
रखना तू यह ध्यान, ऐतबार मत छोड़ना.

मात पिता का मान, लज्जित हो ‘आकुल’ नहीं,
रहे सर्वोच्च स्थांन, निराधार मत छोड़ना

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