4 सितंबर 2017

चलना ही जीवन है (गीतिका)



(2) गीतिका-
छंद- सार
विधान- (सम मात्रिक) 16//12, अं‍त 2 गुरु(22/211/112)
पदांत- जाना
समांत- अम


चलना ही जीवन है पथ में, थक जाएँ थम जाना.
वही शिखर पहुँचा जीवन को, जो अपने दम जाना.


पानी ही जीवन का सुख है, उतरे कभी न पानी,
नहीं तैरना आए जल में, गहरे में कम जाना.

रैन बसेरा करते हैं खग, दिन होते उड़ जाते.
राही, जोगी को नहिं भाता, एक जगह जम जाना.

जो अपना सा, लागे याराँ, करना हँस कर बातें.
खुशी मिले तेरे झुकने से, खुश हो कर नम जाना.

दुनियादारी कहते हैं सुख-दुख में हाथ बढ़ाए,
नेकी कर दरिया में डाले, जिसका भी गम जाना.

छल, बल, कल सब वैर निभाते, धन बरसे कितना भी,
निश्‍छल कर बौछार प्रेम की, जल जैसा रम जाना.

सुखी वही है नहीं छेड़ता, कोई भी रग दुखती,
दुखी वही दुख अपना ज्यादा, दूजे का कम जाना

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