4 अक्तूबर 2017

पत्‍थर सा कठोर तन ले कर जीना होगा (गीतिका)

पदांत- होगा
समांत- ईना


पत्थर सा कठोर तन ले कर, जीना होगा.
प्रकृति से प्रदूषित हालाहल, पीना होगा.

हरित पीत वस्त्राभूषण वर्षा पर निर्भर,
है मनुष्य यदि मौन, मौन ही, जीना होगा.

घाव दिये हैं, शहर, गाँव, पथ, पगडंडी को,
नासूरों को अब कंटक से, सीना होगा.

स्वच्छ रहें पथ,गाँव,श्‍ाहर सब, नदियाँ, नाले ,
रोम-रोम, रग-रग, मेरा भी, भीना होगा.

वृक्षारोपण हो धरती हो, हरी-भरी फिर,
क्यों पत्थर से छलनी मेरा, सीना होगा.

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