10 नवंबर 2017

दर्प मत कर (गीतिका)


छंद- पीयूष वर्ष
मापनी- 2122 2122 212 (अंत गुरु से, वाचिक नहीं)
पदांत- सदा
समांत- आरा

दर्प मत कर दर्प ने मारा सदा.
दर्प से इंसान है हारा सदा.

जुर्म मत कर जुर्म तो बेअंत है,
जुर्म से इंसान नाकारा सदा.

गर्ज मत कर गर्ज ने लूटे सभी,
गर्ज से इंसान बेचारा सदा.

कर्ज मत कर कर्ज तो इक मर्ज है 
कर्ज से इंसान आवारा सदा.

शर्म मत कर शर्म कैसी कर्म में, 
कर्म से  इंसान है प्‍यारा सदा.

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