14 नवंबर 2017

हर दिल में बसता हो भारत.... (गीत)



छंद- लावणी 
मात्रा भार- 30 (चौपाई+ 14), 16,14 पर यति, अंत गुरु (वाचिक) अनिवार्य.
पदांत-रहे 
समांत- आन 

उन्नत भाल हिमालय सुरसरि, गंगा इसकी आन रहे.
हर दिल में बसता हो भारत, ऐसा हिन्दुस्तान रहे.


सम्‍प्रभुता का चिह्न तिरंगा,
स्वाभिमान हम करें सभी,
प्रेम और सद्भाव बढ़े अब
आत्मज्ञान हम करें सभी.
चक्र सुदर्शन सा लहराये, करता यह गुणगान रहे.
हर दिल में बसता हो भारत........................’’

वेद, पुराण, उपनिषद्, गीता,
रामायण से ग्रंथ बड़े
वंदेमातरं जन-गण-मन हैं
राष्ट्रगान औ गीत बड़े
न्याय और आतिथ्य सदा ही, भारत के परिधान रहे.
हर दिल में बसता हो भारत........................’’

शून्य, ध्यान, संगीत, योग हैं,
बने धरोहर आज सभी,
राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध हैं
बने युगंधर राज कभी
अवतारों ने जन्म लिया वे, कहलाते भगवान रहे.
हर दिल में बसता हो भारत........................’’

अपने भारत को आकुलसब,
शत-शत बार प्रणाम करो,
दिन दूनी और रात चौगुनी
ख्याति बढ़े वह काम करो.
है अजेय अद्वितिय, अनूठा, भारतवर्ष महान् रहे.
हर दिल में बसता हो भारत........................’’

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