13 दिसंबर 2017

कब से मैं बैठी हूँ (गीतिका)

(लय- दिल आज शायर है ग़म आज नग्‍मा है शब ये ग़ज़ल है सनम) 
पदांत- होने लगी 
समांत- आम 

कब से मैं बैठी हूँ, कब आओगे तुम, अब शाम होने लगी.
अपनी मुहब्‍बत की, चर्चा जमाने में, अब आम होने लगी.

नित ढूँढती हैं, तुम्‍हारे निशाँ, जिंदगी चार दिन की नहीं,
आओ न आओ, मेरी जिंदगी तेरे, अब नाम होने लगी.

कितने सुहाने वो, दिन थे हमारे, अब क्‍यों जमाने हुए.
कहते हैं होती, सफल कोशिशें अब, नाकाम होने लगी.

तुम जो न आए, हँसेगा जमाना, हँसेगी मुहब्‍बत मेरी,
कह कर दिवाना, परेशाँ करे लाज, नीलाम होने लगी.

कल से करेगा, मुहब्‍बत न कोई, इबादत कहेगा नहीं, 
कोई वजह हो तो, कह जाओ मैं अब,बदनाम होने लगी.

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