23 दिसंबर 2017

कुछ मुक्‍तक

मुक्‍तक- (तदोममु के लोकार्पण 9 दिस.’17 पर)
पुस्‍तक 'तन दोहा मन मुक्तिका' का लोकार्पण
दिवस आज का सिद्ध हो, आयोजन भी सिद्ध.
सिद्ध सभी का आगमन, लोकार्पण भी सिद्ध.
पूर्ण हुआ उद्देश्‍य भी, हुआ यज्ञ सम्‍पन्‍न,
मात शारदे की हुई, अनुकम्‍पा भी सिद्ध.

मुक्‍तक (मुक्‍तक मेला 16.12.2017)
रंग बिरंगे फूलों से हर, बाग बगीचे लदे मिले.
सरदी के कपड़ों में सारे, बच्‍चे बूढ़े लदे मिले.
सूरज को भी मिले मार्ग सब, मेघ धुंध से भरे हुए,
और धरा पर गाँव शहर सब, ओस कणों से लदे मिले.   

मुक्‍तक (मुक्‍तक मेला 16.12.2017)
जाते जाते साल कह रहा, सोचो क्‍या पाया मुझसे.
बेटी-दामाद के परिवार के साथ
किसने पाई खुशी, परेशाँ, कौन है भरपाया मुझसे.
पाना-खोना मेरे वश में, नहीं समय कब रुका यहाँ,
मैंने वो बाँटा मौसम ने, जो भी बँटवाया मुझसे.

मुक्तक मेला 23.12.2017  (आधार छंद- लावणी)
कुछ रिश्ते रक्खें सँभाल के, रिश्ते ही आबाद रखें.
विष घोलें जीवन में ऐसे, रिश्तों को आज़ाद रखें.
रिश्ते बेमानी हो जाएँ हो लें
उदासीन उनसे,
रस घोलें जीवन में ऐसे, रिश्तों को ही याद रखें.

मुक्‍तक मेला 23.12.2017 (आधार छंद- ताटंक)
दोस्त फ़रिश्ते ही होते हैं, बाक़ी रिश्ते होते हैं.
रिसते हैं बन के नासूरी, रिश्तों को जब ढोते हैं.
सच्चा मित्र सदा घावों पर, 'आकुल' मरहम है देता,
पर कुछ रिश्तों के कारण हम, ढेरों ख़ुशियाँ खोते हैं.
    

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