25 दिसंबर 2017

नाय नैकूँ होनो जानो कछू भी (गीतिका)

छंद- घनाक्षरी (वार्णिक)
शिल्‍प विधान- 31 वर्ण, 8,8,8,7 पर यति, अंत गुरु.
पदांत- सौं नाय नै कूँ, होनो जानो कछू भी.
समांत- अवे

सिद्ध करौ धरम कूँ, वित्‍त भरौ करम सूँ,
बैठवे सौं नाय नैकूँ, होनो जानो कछू भी.  
ढेरों बिपदायें खड़ी, जीवन में छोटी बड़ी,
ढेलवे सौं नाय नैकूँ, होनो जानो कछू भी

कागज पानन सूँ न, हुक्‍म चलावन सूँ न,
देव कूँ मनावन सूँ न, राह मिल जात है.
करौगे न कहीं पैठ, सुमिरनी नित्त बैठ,
फेरवे सौं नाय नैकूँ, होनो जानो कछू भी.   

जात-पाँत, रीत-भाँत, मन नैकूँ हो न शांत,  
सूखे हों जो पेट आँत, सपन न आत है.
भीख ले के हो प्रसन्‍न, पशु के समक्ष अन्‍न
फैंकवे सौं नाय नैकूँ, होनो जानो कछू भी.   

‘आई है विपत्ति जब, नियति ने तब तब,
खोले हैं गवाख लख, सभी जुट जात हैं.
सैंकड़ों हैं आपदायें, सैंकड़ों हैं समस्‍याएँ,
देखवें सौं नाय नैकूँ होनो जानो कछू भी.

हो धरा को स्‍वच्‍छ तन, बढ़ेगौ तभी वतन,
भ्रष्‍टता कौ होय अंत, मिलैगी नजात है.
रुकै न समय घड़ी,  कोरी बातें बड़ी-बड़ी,
केहवै सौं नाय नैकूँ, होनो जानो कछू भी.

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