26 दिसंबर 2017

अभिलाषाएँ (गीतिका)

छंद- लावणी
शिल्प विधान- मात्रा भार 30. 16,14 पर यति, अंत 3 गुरु (वाचिक)
पदांत- करें,
समांत- आर

जैसे ऋतुएँ, हवा, प्रकृति सब, इस धरती से प्यार करें.
जैसे सूर्य, हवा, पानी सब, ऊर्जा का संचार करें.

वैसे सुख-दुख का बनती हैं, अभिलाषायें मूल सदा,
जैसे जन्म-मृत्यु है शाश्वत, सब जीवन से प्यार करें.

इसीलिए आवश्यक है हम, एक ध्येय दें जीवन को,
धैर्य, सजग, हो शांत चित्त से हित चिंतन हर बार करें.

अभिलाषाएँ खत्म न होतीं, पलती हैं जीवन रहते,
सफल तभी अभिलाषाओं को, जीवन में साकार करें.

बन पाते वे ही जितेंद्रिय, दूर रह मोह माया से,
अभिलाषाओं से रह मुक्त योग से मन विस्तार करें.

उसने ईश्वर पाया जिसने, अभिलाषाएँ हैं त्यागी,
जीवन को समझें तप सारे, यज्ञ,पुण्‍य, परिहार करें.

ऋतु की भाँति है जीवनकाल, टिका चार आयामों पर,
संघर्षों से तप तन-मन से, पूरे हर संस्कार करें.

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