18 जनवरी 2018

क्‍या कहोगे (गीतिका)

छंद- पियूष निर्झर
मापनी- 2122 2122 2122
पदांत- क्‍या कहोगे
समांत- अले 

देख कर भी जो न सँभले क्‍या कहोगे?
आँख वह हर बार बदले क्‍या कहोगे?

मन हमारा क्‍यों न वश में आज तक भी,
देख कर हर चीज मचले क्‍या कहोगे?

खर्च ज्‍यादा आय कम हैं खर्च फिर भी,
कर रहा, आदत न बदले क्‍या कहोगे?

आदमी इंसान में अब फर्क करना,
व्‍यर्थ, चर्चायें व मसले क्‍या कहोगे?

मौन है धरती प्रकृति सहती प्रदूषण,
मौन है मानव न सुध ले क्‍या कहोगे?

भूल बैठे हैं पसीना, श्रम सभी हम,
बीच चौराहे में फिसले क्‍या कहोगे?

कोशिशें होती नहीं हैं आँधियों सी,
हो रहे हैं पार हमले क्‍या कहोगे?

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