1 मार्च 2018

चलें होली जलायें हम (गीतिका)

छंद- विजात
मापनी- 1222 1222
समांत- आयें
पदांत- हम

चलें होली जलायें हम
रँगें होली मनायें हम.

घृणा की होलिका बालें
यही बीड़ा उठायें हम.

मिटा कर द्वेष कटुताएँ
गले सबको लगायें हम.

मिटे दिल से कलुष सारे,
न रिश्‍तों को लजायें हम

यही त्‍योहार लाता है
निकट, सबको बुलायें हम.

न हों हैरान अपने भी
न गैरों को सतायें हम.

चलो आकुल, किसी को भी
न होली पर रुलाएँ हम.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें