2 मार्च 2018

हो ले सबकी होली बोली (गीतिका)

छंद- पदपादाकुलक
शिल्‍प विधान- एक चरण में 16 मात्रा. आदि और अंत में गुरु     
(2 या 11) आवश्‍यक. पहले द्विकल के बाद यदि त्रिकल आता है तो 
उसके बाद एक और त्रिकल आना चाहिए.
(लय- उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहाँ जो सोवत है.)


हो ले सबकी होली बोली.
रंगों से भर दे हर झोली .

रंगो में रँग जा तू सबके,
जैसे मैं सब के सँग हो ली.

रँग जाती कभी हिना बन कर,
घर में बन जाऊॅ रँगोली.

जल जाऊँ चाहे जीवन में,
सीने पर खालूँ मैं गोली.

है चाह यही मैं जीवन में,
खेलूँ न कभी काली होली.

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