3 मार्च 2018

कण कण में भगवान हैं (दोहा गीतिका )

छंद- दोहा

कण कण में भगवान हैं, पर हम जाते हार ।
प्रभु को ढूँढ़ा जब जहाँ, मौन मिले हर बार ।।1।।

पुरी धाम सब तीर्थ में, किये रात दिन एक ।
हुई न अब तक प्रेरणा, हुआ न बेड़ा पार ।।2।।

प्रभु उसको कैसे मिलें, तन माया में चूर ।
अंग-अंग है विष भरा, जिसका ना परिहार ।।3।।

जब तक छोड़ेगा नहीं, अपना अहं मनुष्य ।
तब तक प्रभु के पास में, जाना है बेकार ।।4।।

जो भजता है लीन हो, भूल जगत् के कष्ट ।
हो जाता वह एक दिन, प्रभु में एकाकार ।।5।।

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